मन कि कोई भौतिक सत्ता नहीं
पर मन ही आत्मा का दर्पण होता है
मन के हारे हार है मन के जीते जीत
मन से हरने वाला ही वास्तव में हारता है
और मन को जितने वाला ही जीत का सौभाग्य प्राप्त करता है
मन कि गति ही जीवन का रूप है
मन का सत्य संकल्प ही शिव स्वरुप है
मन कि गति अनंत है
आत्मा का मूल कही मन में ही निहित रहता है यधपि मन आत्मा का ही प्रारूप है
मन व् संकल्प
माया से मन-और मन के काया
मन से संकल्प और संकल्प से शिव
यधपि मन भीतिरि विषय है तब पर भी यह आहार व् विहार से सर्वाधिक प्राभावित होता है
मन सदेव नित्य है पर
मन कभी शुन्य गति को प्राप्त नहीं होतामन कभी नहीं मरतामन कि विकृत गति पाप का कारन बनती हैमन कि विशुद्ध गति सत्य की और प्रेरित करती हैमन की गति में ढहराव दुःख का कारण बनता हैमन की गति में नियत तेजी प्रफुलता का कारण बनती हैमन का विषय संसर्ग पुनः योनि की और आकर्षित करता हैमन का भागवत प्रेम परम सत्य का मार्ग प्रशस्त करता हैमन की चंचलता प्रोभान की और आकर्षित करती हैमन की उदासीनता वैराग्य की और आकषित करती हैमन की गति पर आयु का अधिक प्रभाव नहीं होता
मन का मूल संचालक कोई और है
आत्मा को मन के माध्यम से है इसकी गति पर पहुचने का कुछ अवसर प्राप्त है
आत्मा एक निहित कर्म निमित ही इसको उपयोग कर सकती है
आत्मा की कर्म गति मन के अधीन है तब पर भी आत्मा सामर्थ जुटा सकती है
आत्मा का सामर्थ मन के अधीन है पर भागवत शरण से मन आत्मा के सामीप्य आ सकता है
आत्मा और मन यधपि एक दूसरे के नियमगत विपरीत है पर माया पाश से बधे है
आत्मा मन के द्वारा ही ज्ञान व् अहंकार से परिचित होती है
आत्मा मन के सहयोग से ही इद्रिय सुख व् दुःख को प्राप्त होती है
आत्मा में संकल्प शक्ति होती है पर मन उसके अधीन नहीं होने से सामर्थ हीन होकर रह जाती है
आत्मा एक संकल्प के निहित देह धारण करती है और माया उसे मन से बांध देती है
आत्मा के तीनो बंधनो का मूल सूत्र मन है
आत्मा शरीर त्याग सकती है पर मन नहीं क्यों की बंदन शरीर से अधिक मन है
आत्मा के मन से ही शरीर से व्याख्या है और ये व्याख्या नित्य है इसी कारण पुनर जनम का सत्य प्रकाशित है
आत्मा को मन की गति ही जीवन चक्र में लाती है
आत्मा तक पहुच के लिए मन पर पहुच जरुरी है
आत्मा और परमात्मा के मध्य मन की मात्र विकृत गति है
Hare Rama
Light has got a lot of colors in itself out of which one is living on the planet,
Color is nothing but the dispersion of light so is about the truth of life,
Life is a part of light-with out the light there is no meaning in life,
Sun is the only basic source of light and the cause of the soul,
The light of the Sun reflects through the Moon, the very cause of Manas, Manas मन the media to interface with the truth of entity and identity,
मानव जीवन की तीन मुख़्य शाखाये है
मस्तिस्क
ह्रदय व्
मन
मस्तिस्क का कुछ भेद विज्ञानिक प्रयास की निमित हुआ है पर आज भी वह सत्य से परे एक रहस्य है
ह्रदय के कुछ भौतिक गुण मानव की बहुच में है पर सत्य से है कोई वार्ता नहीं
मन पर विज्ञानं की पहुंच है ही नहीं इसकी कार्य शैली-चिंतन-भाव-प्रवर्ती व् इसका सत्य स्वयं में एक रहस्य है जो आत्मा को भी भरमाता ही
मन मस्तिस्क के चिंतन को भी उत्तेजित कर देता है
मन आत्मा को उसके सत्य के गिराने में देरी नहीं करता
मन का आदेश इन्द्रिया व् मस्तिस्क एक मत से मानते है
मन जीवन में राजा के स्वरुप में व्यक्त रहता है
मन का केंद्र बिंदु चित है और चिट आत्मा के परिबिंभ से जुड़ा रहता है
चित चेतना का केंद्र है पर माया से व्यथित रहता है
मन हृदय के आकाश में व्याप्त रह कर अपनी गति को नियत करता है
मूल रूप से मन आत्मा का सर्वोपरि साधन है
आत्मा का प्रेरक मन है और मन का संचालन माया के वश है यधपि यह पूर्ण सत्य नहीं तब पर भी सत्य के कम नहीं
आत्म कामना का सूत्र है मन
आत्मा युक्ति का सत्य है मन
मन के विकास की कोई सीमा नहीं
मन ही जीव को ब्रह्म व् ब्रह्म को जीव बना देता है
मन की गति सभी भीतिक गतिओ से अधिक मणि गयी है
मन की चंचलता को मापने का कही कोई पैमाना नहीं है
मन व आत्मा ब्रह्मा मिलान की युक्ति तक भी साथ रहते है
मन से ही भोग व् सम्भोग की परिकल्पना है
मन की नियत गति से भिन्न की सत्ता सर्वदा आत्मा को शांत स्थिति से दूर रखती है
मरने के बाद भी मन की अन्यंत्र गति के कारण ही जीवात्मा शांति को तरसती है
मन रुपी सागर में भाव रुपी लहर जीव को व्यथित करती है
सागर में लहर का होना स्वाभाविक है वैसे ही मन में भाव का
मन एक आत्म युक्त दूरगामी सत्य है
यह आत्मा से बंधा है पर माया से मोहित
यह भी सत्य है की यह आत्मा के सन्देश को सम कल्प अतार्थ कार्यान्वित की और मन ही ले जाता है आत्मा का सम कल्प विशुद्ध हो यहाँ भी मन की ही मुख्य स्थिति रहती है यद्धपि नियंता कोई और है पर आत्मा का अहम भाव रहता है
मन इन्द्रियों को प्रभावित तो करता है पर इन्द्रिया अपनी छमता पर ही मन को सहयोग देती है
इन्द्रियों का सहयोग न मिलने पर यह निम्न गति को प्राप्त हो विकट कल्प में डूब जाता है जो जीवन की गति को दुखत व् असहाय रूप देता है
मन सिद्ध हो तो जीवन सिद्ध
मन व्यथित हो तो जीवन दुर्गम
आत्म कामना की सिद्धि मन ही है
मन की सिद्धि सत्य है
सत्य की अनुभूति मन को ही सर्व प्रथम प्राप्त होती है
इच्छा सकल्प चिंतन व् क्रिया यह सभी मन के छेत्र है पर मन इन सभी से पर आत्म बंधन का एक अर्ध सत्य है
पूर्ण सत्य ब्रह्म की इच्छा संकल्प चिंतन व् क्रिया में ही निहित है
आदि मानव की प्रथम अनुभूति को मनु कहा गया यह मन का ही दुर्गम सूत्र था जो आत्म प्रकाश के रूप में प्रगट हुआ
मानव भले ही ब्रह्माण्ड को वश में करले पर मन गति पर इसका विशेष प्रभाव नहीं
मलिन मन अशांति का कारन है चाहे वह जीवन यात्रा हो या इसके बाद
इसी लिए मन को संकल्प की अग्नि से परमात्मा के चरणविन्द में नियोजित करना ही मानव का धर्म पर्व है
यह मन जागते हुए मानव से बहुत दूर चला जाता है और सुषुप्त अवस्था में शांत भाव से निकट आ जाता है पर नियत्रण में नहीं
अवश्य ही मन दिव्य है पर इसकी ज्योति प्रत्यक्ष नहीं-यह रख की निचे की आग की तरह होती है जिसे साधन से प्रगट करना होता है
मन एक राजा है
इन्द्रिया इस की प्रजा
ब्रह्माण्ड में माया का दर्शन इसका साम्राज्य
इसकी विशुद्धता ही इसका सुखद साम्राज्य है जो जीव को पूर्ण शांति की और ले जाता है
ज्ञान अज्ञान से अलग एक सत्य है मन पर यह इनसे घिरा रहता है
जहा ज्ञान की सीमा होती है वहा भक्ति व् धैर्य प्रगट होते है
अज्ञान से अहंकार व् भय
और इन दोनों का सूत्र धार मन ही है
मन विष और अमृत दोनों के प्रति समभाव है पर शिव युक्ति से दूर यह विष तुल्य होता है और शिव गतिमय हो अमृत तुल्य हो कर आत्मा को धन्य करता है
विशुद्ध मन एक औषधि का कार्य भी करता है
ब्रह्माण्ड के सभी रोगो का उपचार मन की गति में निहित है
विशुद्ध मन एक दिव्य वाहन का कार्य भी करता है
विशुद्ध मन एक भक्त व् भगवान के मिलान का कार्य भी करता है
मन चन्द्र से सर्वाधिक प्रभावित है
और चन्द्र भगवान शिव का एक अति सामीप्य सूत्र है
जो सत्य संयम दृढ़ता पवित्रता व् अमृत तुल्य जाना जाता है
और शिव संकल्प में अपनी अहम भूमिका से शिव भक्तो के मन को विशुद्ध गति से प्रभावित करता है
सभी यज्ञो का परम सूत्र है पवित्रता
मन की पवित्रता का परम सूत्र है चन्द्र
मृत्यु उपरांत जीव विशुद्ध मन की गति के कारण ही चन्द्र वास का धिकारी बनता है जो आत्मा की परम शांति का कारण होता है
शिव कृपा से जीव चन्द्र बल से विभूषित हो शिव संकल्प के सामीप्य को प्राप्त होता है
शिव संकल्प जीव को उसके मन की विशुद्ध गति की और प्रभावित करता है
मन की विशुद्ध गति जीव को शिव महिमा के सत्य की और प्रेरित करती है
वह सत्य जो स्वयं में एक दिव्या सुंदरता धारण किये जीवात्मा को मोक्ष पद प्रदान करता है जहा शांति व् परमानन्द की असीम सीमा है
शिव संकल्प भीतरी कल्याण की वह परम सीमा है जहा संसारी मन का वचस्व नहीं
शिव संकल्प युक्त मन ज्ञान व् प्रकाश का अनूठा मिलान है जो जीव को परम सत्य की और ले जाता है
विशुद्ध मन ही दृढ़ शिव संकल्प करी होता है
मन को शिवमय करने से ह्रदय में अमृत तत्व प्रगट होता है जो शिव तत्व का परम मूल स्त्रोत है
अमृत एक दिव्य प्रकाश है जो अमर तत्व का प्रकाशक है
मन जो कल्पनाओ की सीमा है यदि उसका समावेश शिव संकल्प में हो जाये तो आत्मा को एटीएम अनुभूति होना निश्चिंत है
कल्प और कल्पना एक दूसरे के पूरक भी है
शिव संकल्प युक्त मन अमृत तुल्य होने के कारण भौतिक विलासों से ऊपर दिव्य युक्तियों का साधन हो जीव के कल्याण का कारन बनता है
मन की अनुकूलता जीव के सत्य को प्रकाशित करती है मन की प्रितिकुलता जीव की विवशता को दर्शाती है
शिव मय मन आत्मिक बल का दाता होता है
जीव का प्रत्येक कर्म मन की गति से जुड़ा है पर यदि मन शिव संकल्प युक्त हो तो वह आत्म दर्शन ही नहीं परमात्म साक्षात्कार का स्वप्न साकार करता है
Color is nothing but the dispersion of light so is about the truth of life,
Life is a part of light-with out the light there is no meaning in life,
Sun is the only basic source of light and the cause of the soul,
The light of the Sun reflects through the Moon, the very cause of Manas, Manas मन the media to interface with the truth of entity and identity,
मानव जीवन की तीन मुख़्य शाखाये है
मस्तिस्क
ह्रदय व्
मन
मस्तिस्क का कुछ भेद विज्ञानिक प्रयास की निमित हुआ है पर आज भी वह सत्य से परे एक रहस्य है
ह्रदय के कुछ भौतिक गुण मानव की बहुच में है पर सत्य से है कोई वार्ता नहीं
मन पर विज्ञानं की पहुंच है ही नहीं इसकी कार्य शैली-चिंतन-भाव-प्रवर्ती व् इसका सत्य स्वयं में एक रहस्य है जो आत्मा को भी भरमाता ही
मन मस्तिस्क के चिंतन को भी उत्तेजित कर देता है
मन आत्मा को उसके सत्य के गिराने में देरी नहीं करता
मन का आदेश इन्द्रिया व् मस्तिस्क एक मत से मानते है
मन जीवन में राजा के स्वरुप में व्यक्त रहता है
मन का केंद्र बिंदु चित है और चिट आत्मा के परिबिंभ से जुड़ा रहता है
चित चेतना का केंद्र है पर माया से व्यथित रहता है
मन हृदय के आकाश में व्याप्त रह कर अपनी गति को नियत करता है
मूल रूप से मन आत्मा का सर्वोपरि साधन है
आत्मा का प्रेरक मन है और मन का संचालन माया के वश है यधपि यह पूर्ण सत्य नहीं तब पर भी सत्य के कम नहीं
आत्म कामना का सूत्र है मन
आत्मा युक्ति का सत्य है मन
मन के विकास की कोई सीमा नहीं
मन ही जीव को ब्रह्म व् ब्रह्म को जीव बना देता है
मन की गति सभी भीतिक गतिओ से अधिक मणि गयी है
मन की चंचलता को मापने का कही कोई पैमाना नहीं है
मन व आत्मा ब्रह्मा मिलान की युक्ति तक भी साथ रहते है
मन से ही भोग व् सम्भोग की परिकल्पना है
मन की नियत गति से भिन्न की सत्ता सर्वदा आत्मा को शांत स्थिति से दूर रखती है
मरने के बाद भी मन की अन्यंत्र गति के कारण ही जीवात्मा शांति को तरसती है
मन रुपी सागर में भाव रुपी लहर जीव को व्यथित करती है
सागर में लहर का होना स्वाभाविक है वैसे ही मन में भाव का
मन एक आत्म युक्त दूरगामी सत्य है
यह आत्मा से बंधा है पर माया से मोहित
यह भी सत्य है की यह आत्मा के सन्देश को सम कल्प अतार्थ कार्यान्वित की और मन ही ले जाता है आत्मा का सम कल्प विशुद्ध हो यहाँ भी मन की ही मुख्य स्थिति रहती है यद्धपि नियंता कोई और है पर आत्मा का अहम भाव रहता है
मन इन्द्रियों को प्रभावित तो करता है पर इन्द्रिया अपनी छमता पर ही मन को सहयोग देती है
इन्द्रियों का सहयोग न मिलने पर यह निम्न गति को प्राप्त हो विकट कल्प में डूब जाता है जो जीवन की गति को दुखत व् असहाय रूप देता है
मन सिद्ध हो तो जीवन सिद्ध
मन व्यथित हो तो जीवन दुर्गम
आत्म कामना की सिद्धि मन ही है
मन की सिद्धि सत्य है
सत्य की अनुभूति मन को ही सर्व प्रथम प्राप्त होती है
इच्छा सकल्प चिंतन व् क्रिया यह सभी मन के छेत्र है पर मन इन सभी से पर आत्म बंधन का एक अर्ध सत्य है
पूर्ण सत्य ब्रह्म की इच्छा संकल्प चिंतन व् क्रिया में ही निहित है
आदि मानव की प्रथम अनुभूति को मनु कहा गया यह मन का ही दुर्गम सूत्र था जो आत्म प्रकाश के रूप में प्रगट हुआ
मानव भले ही ब्रह्माण्ड को वश में करले पर मन गति पर इसका विशेष प्रभाव नहीं
मलिन मन अशांति का कारन है चाहे वह जीवन यात्रा हो या इसके बाद
इसी लिए मन को संकल्प की अग्नि से परमात्मा के चरणविन्द में नियोजित करना ही मानव का धर्म पर्व है
यह मन जागते हुए मानव से बहुत दूर चला जाता है और सुषुप्त अवस्था में शांत भाव से निकट आ जाता है पर नियत्रण में नहीं
अवश्य ही मन दिव्य है पर इसकी ज्योति प्रत्यक्ष नहीं-यह रख की निचे की आग की तरह होती है जिसे साधन से प्रगट करना होता है
मन एक राजा है
इन्द्रिया इस की प्रजा
ब्रह्माण्ड में माया का दर्शन इसका साम्राज्य
इसकी विशुद्धता ही इसका सुखद साम्राज्य है जो जीव को पूर्ण शांति की और ले जाता है
ज्ञान अज्ञान से अलग एक सत्य है मन पर यह इनसे घिरा रहता है
जहा ज्ञान की सीमा होती है वहा भक्ति व् धैर्य प्रगट होते है
अज्ञान से अहंकार व् भय
और इन दोनों का सूत्र धार मन ही है
मन विष और अमृत दोनों के प्रति समभाव है पर शिव युक्ति से दूर यह विष तुल्य होता है और शिव गतिमय हो अमृत तुल्य हो कर आत्मा को धन्य करता है
विशुद्ध मन एक औषधि का कार्य भी करता है
ब्रह्माण्ड के सभी रोगो का उपचार मन की गति में निहित है
विशुद्ध मन एक दिव्य वाहन का कार्य भी करता है
विशुद्ध मन एक भक्त व् भगवान के मिलान का कार्य भी करता है
मन चन्द्र से सर्वाधिक प्रभावित है
और चन्द्र भगवान शिव का एक अति सामीप्य सूत्र है
जो सत्य संयम दृढ़ता पवित्रता व् अमृत तुल्य जाना जाता है
और शिव संकल्प में अपनी अहम भूमिका से शिव भक्तो के मन को विशुद्ध गति से प्रभावित करता है
सभी यज्ञो का परम सूत्र है पवित्रता
मन की पवित्रता का परम सूत्र है चन्द्र
मृत्यु उपरांत जीव विशुद्ध मन की गति के कारण ही चन्द्र वास का धिकारी बनता है जो आत्मा की परम शांति का कारण होता है
शिव कृपा से जीव चन्द्र बल से विभूषित हो शिव संकल्प के सामीप्य को प्राप्त होता है
शिव संकल्प जीव को उसके मन की विशुद्ध गति की और प्रभावित करता है
मन की विशुद्ध गति जीव को शिव महिमा के सत्य की और प्रेरित करती है
वह सत्य जो स्वयं में एक दिव्या सुंदरता धारण किये जीवात्मा को मोक्ष पद प्रदान करता है जहा शांति व् परमानन्द की असीम सीमा है
शिव संकल्प भीतरी कल्याण की वह परम सीमा है जहा संसारी मन का वचस्व नहीं
शिव संकल्प युक्त मन ज्ञान व् प्रकाश का अनूठा मिलान है जो जीव को परम सत्य की और ले जाता है
विशुद्ध मन ही दृढ़ शिव संकल्प करी होता है
मन को शिवमय करने से ह्रदय में अमृत तत्व प्रगट होता है जो शिव तत्व का परम मूल स्त्रोत है
अमृत एक दिव्य प्रकाश है जो अमर तत्व का प्रकाशक है
मन जो कल्पनाओ की सीमा है यदि उसका समावेश शिव संकल्प में हो जाये तो आत्मा को एटीएम अनुभूति होना निश्चिंत है
कल्प और कल्पना एक दूसरे के पूरक भी है
शिव संकल्प युक्त मन अमृत तुल्य होने के कारण भौतिक विलासों से ऊपर दिव्य युक्तियों का साधन हो जीव के कल्याण का कारन बनता है
मन की अनुकूलता जीव के सत्य को प्रकाशित करती है मन की प्रितिकुलता जीव की विवशता को दर्शाती है
शिव मय मन आत्मिक बल का दाता होता है
जीव का प्रत्येक कर्म मन की गति से जुड़ा है पर यदि मन शिव संकल्प युक्त हो तो वह आत्म दर्शन ही नहीं परमात्म साक्षात्कार का स्वप्न साकार करता है
Dark and light are two facets of Maya created by almighty God, reason best known to himself only yet saints and sages have elaborated the subject to reach,
Even in the deepest dark spell of this creation provided the path for light is truth to believe for man,
Manas मन if optimized with a pitch of true light leads one to a requisite truth of self
The devotional spirit is the ray of light that gives the soul a clear look at the status of self [self-realization, status of the inner core, bare fact of life],
-~-~-~-~
Modes known as rays of hope for life here on the planet in the Dark of delusion is___
Realization
Wisdom of knowledge
Blessings of saints
Abode in the very name of the lord
Adore the path of truth
Yoga & Meditation
Faith in self and the supreme
Charity
Love in Nature
-~-~-~-~
Ray of light in other words_
True saints are more than rays of light on the subject of life,
Their blessings
Their words
Their teachings
They're just a sight
Even a glimpse of true saints proves to be more than a ray of light in the deep dark of delusion
Blessings of elders are also proved to be a ray of light in the deep dark of delusion
Hare Rama